इस्लाम और पर्यावरण: एक झलक
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-जिसने अपनी जरूरत से ज्यादा पानी को रोका और दूसरे लोगों को पानी से वंचित रखा तो अल्लाह फैसले वाले दिन (बदला दिया जाने वाले दिन) उस शख्स से अपना फज्लो करम रोक लेगा।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-जो बंदा कोई पौधा लगाता है या खेतीबाड़ी करता है। फिर उसमें से कोई परिंदा, इंसान या अन्य कोई प्राणी खाता है तो यह सब पौधा लगाने वाले की नेकी (पुण्य) में गिना जाएगा।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-जो भी खजूर का पेड़ लगाएगा, उस खजूर से जितने फल निकलेंगे, अल्लाह उसे उतनी ही नेकी देगा।
पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया- जिस घर में खजूर का पेड़ हो, वह भुखमरी से परेशान नहीं हो सकता।
ईमान
हजरत अबू हुरैरा (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (सल०) ने फरमाया कि ईमान वालों में ज्यादा कामिल ईमान वाले वह लोग है जो अख्लाक में ज्यादा अच्छे हैं। (अबू दाऊद)
सबसे अच्छे ईमान वाले वह लोग है जिनके अख्लाक अच्छे है
उनमें से एक यह भी है कि आदमी अच्छा अख्लाक अख्तियार करे और बुरे अख्लाक से अपनी हिफाजत करे। नबी करीम (सल०) की बैसत के जिन मकासिद का कुरआन मजीद में जिक्र किया गया है उनमें एक यह भी बताया गया है कि आप को इंसानों का तजकिया करना है और उस तजकिये में अख्लाक की इस्लाह और दुरूस्ती को खास अहमियत है।
हदीस की मुख्तलिफ किताबों में खुद आप से यह मजमून रिवायत किया गया है कि मै अख्लाक की इस्लाह के लिए भेजा गया हूं। यानी अख्लाक की इस्लाह का काम मेरी बअसत के अहम मकासिद और मेरे प्रोग्राम के खास हिस्सों में से है।
होना भी यही चाहिए था क्योंकि इंसान की जिदंगी और उसके नतीजों में अख्लाक की बड़ी अहमियत है। अगर इंसान के अख्लाक अच्छे हों तो उसकी अपनी जिदंगी भी दिली सुकून और खुशगवारी के साथ गुजरेगी और दूसरों के लिए भी उस का वजूद रहमत और चैन का सामान होगा। इसके बरअक्स अगर आदमी के अख्लाक बुरे हो तो खुद भी वह जिदंगी के लुत्फ व खुशी से महरूम रहेगा और जिन से उसका वास्ता और ताल्लुक होगा उनकी जिदंगियां भी बेमजा और तल्ख होगी। यह तो खुशअख्लाकी और बदअख्लाकी के वह नकद दुनियावी नतीजे है जिनका हम और आप रोजाना मुशाहिदा और तजुर्बा करते रहते हैं। लेकिन मरने के बाद वाली हमेशा की जिदंगी में इन दोनो के नतीजे इनसे कई दर्जे ज्यादा अहम निकलने वाले है। आखिरत में खुशअख्लाकी का नतीजा अल्लाह की रजा और जन्नत है और बदअख्लाकी का अंजाम अल्लाह का गजब है। अख्लाक की इस्लाह के सिलसिले में नबी करीम (सल०) के जो इरशादात हदीस की किताबों में महफूज है वह दो तरह के हैं। एक वह जिन में आप ने उसूली तौर पर अच्छे अख्लाक पर जोर दिया है और उसकी अहमियत व फजीलत और उसका गैर मामूली आखिरत का सवाब बयान फरमाया है। दूसरे वह जिनमें आप ने कुछ खास खास अच्छे अख्लाक अख्तियार करने की या इसी तरह कुछ मखसूस बदअख्लाकियों से बचने की ताकीद फरमाई है। ईमान और अख्लाक में ऐसा लगाव है कि जिसका ईमान कामिल होगा, उसके अख्लाक लाजिमन बहुत अच्छे होंगे। उसका ईमान भी बहुत कामिल होगा। वाजेह रहे कि ईमान के बगैर अख्लाक बल्कि किसी अमल का यहां तक कि इबादतों का भी कोई एतबार नही है। हर अमल और हर नेकी के लिए ईमान बमंजिला रूह और जान के है। इसलिए अगर किसी शख्सियत में अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान के बगैर अख्लाक नजर आए तो वह हकीकी अख्लाक नही है बल्कि अख्लाक की सूरत है। इसलिए अल्लाह पाक के यहां इसकी कोई कीमत नही है। कबीला मुजैयना के एक शख्स से रिवायत है कि कुछ सहाबा ने अर्ज किया या रसूल (सल०)। इंसान को जो कुछ अता हुआ है उसमें सबसे बेहतर क्या है? आप (सल०) ने इरशाद फरमाया: अच्छे अख्लाक।' (इसको इमाम बेहकी ने शोएबुल ईमान में रिवायत किया है और इमाम बगवी ने शरहुस्सना में इस हदीस को ओसामा बिन शरीक सहाबी से रिवायत किया है) इन हदीसों से यह नतीजा निकालना सही न होगा कि अच्छे अख्लाक का दर्जा ईमान या अरकान से भी बढ़ा हुआ है। सहाबा-ए-कराम जो इन इरशादात के मुखातिब थे उनको नबी करीम (सल०) की तालीम व तर्बियत से यह तो मालूम ही हो चुका था कि दीन के शोबों में सबसे बड़ा दर्जा ईमान और तौहीद का है। इसके बाद अरकान का मकाम है। फिर इनके बाद दीनी जिदंगी के जो मुख्तलिफ हिस्से रहते हैं उनमें मुख्तलिफ वजहों से कुछ को कुछ पर फौकियत और इम्तियाज हासिल है। बिला शुब्हा अख्लाक का मकाम बहुत बुलंद है और इंसानों की सआदत और फलाह में और अल्लाह पाक के यहां उनकी मकबूलियत व महबूबियत में अख्लाक को यकीनन खास दखल है। हजरत आयशा सिद्दीका (रजि०) से रिवायत है फरमाती है कि मैने नबी करीम (सल०) से सुना आप इरशाद फरमाते थे कि साहबे ईमान बन्दा अच्छे अख्लाक से उन लोगों का दर्जा हासिल कर लेता है जो रात भर नफिली नमाजें पढ़ते हों, और दिन को हमेशा रोजा रखते हों। (अबू दाऊद) मतलब यह है कि अल्लाह के जिस बन्दे का हाल यह हो कि वह अकीदा और अमल के लिहाज से सच्चा मोमिन हो और साथ ही उसको अच्छे अख्लाक की दौलत भी नसीब हो तो हालांकि वह रात को ज्यादा नफिले न पढ़ता हो और कसरत से नफिली रोजे न रखता हो लेकिन फिर भी वह अपने अच्छे अख्लाक की वजह से उन शबबेदारों और इबादत गुजारों का दर्जा पा लेगा जो रातें नफिले में काटते है और दिन को रोजा रखते हो।एक रिवायत में नबी करीम (सल०) ने इरशाद फरमाया कि तुम दोस्तों में मुझे ज्यादा महबूब वह है जिनके अख्लाक ज्यादा अच्छे हैं। (सही बुखारी)
आला हजरत
पैदाइश 14 जून 1856 को बरेली में हुई थी। बचपन से ही वह कुदरती ज्ञान से युक्त थे। आपने चार वर्ष की आयु में ही कुरान मज़ीद नाज़िरा
का अध्ययन पूर्ण कर लिया था। तेरह वर्ष की आयु में आला हज़रत ने अपनी
शिक्षा पूर्ण की और दस्तीर फ़जीलत से नवाजे गए। आला हज़रत के बारे में यह कहा
जाता है कि अल्लाह ताला ने अपने फज़ल से आपका सीना दुनिया के हर उलूम से भर
दिया था। इन्होंने हर विषय पर किताबें लिखीं , जिनकी संख्या हजारों में
हैं। आला हज़रत ने अपनी सम्पूर्ण जिंदगी बेवाओं और जरुरत मंदों की सेवा में
व्यतीत की। आपके सारे कार्य सिर्फ अल्लाह ताला के लिए थे। आपको किसी की
तारीफ़ से कोई लेना- देना नहीं था। आपने दो बार (सन् 1878 ई० तथा 1906 में)
हज की यात्रा की।
अपनी शिक्षाओं और उच्च विचारों के कारण आला हज़रत न केवल भारतवर्ष अपितु
दूसरे देश में भी लोकप्रिय होने लगे। धीरे- धीरे आला हज़रत साहब के
शिष्यों ओर अनुयायियों की संख्या बढ़ती जा रही थी।
अक्टूबर सन् 1921 में आला हज़रत ने इस दुनिया से विदा ली। लेकिन
वह दुनिया के लिए ईमान और धर्म का सन्देश देकर गए, जो आज तक लोगों के हृदय
में प्रकाशवन है। आपने आम आदमी के लिए सन्देश दिया था - "ऐ लोगों तुम
प्यारे मुस्तफा के भोले भेड़े हो। तुम्हारे चारों ओर भेड़िए हैं। वह चाहते
हैं कि तुम्हें बहकाएं।
तुम्हे फ़ितना में डाल दें। तुम्हें अपने साथ
जहन्न्म में ले जाएं। इनसे बचो और दूर भागो। ये भेड़िए तुम्हारे ईमान की ताक
में हैं। इनके हमलों से अपने ईमान को बचाओ। "आला हज़रत में बहुत सारी
खूबियां एक साथ थीं। आप एक ही वक्त में मफुस्सिर, मोहद्दिस, मुफ्ती, कारी,
हाफिज़, मुसननिफ ,अदीब, आलिम ,फाजिल, शैखतरीकत और मजुददि शरीयत थे।
- अगर ये सच्ची बातें आपके दिल में घर कर गयी। तो आइए! सच्चे दिल और सच्ची आत्मा वाले मेरे प्रिय मित्र उस मालिक को गवाह बनाकर और ऐसे सच्चे दिल से जिसे दिलों का हाल जानने वाला मान ले, इक़रार करें और प्रण करें:
आपका कर्तव्य
ईमान लाने के बाद
अपने मालिक द्वारा दिया गया कुरआन पाक सोच समझ कर पढ़ना चाहिए और पाकी और सफ़ाई के तरीक़ों और दीनी मामलों को सीखना चाहिए। सच्चे दिल से यह दुआ करनी है कि ऐ हमारे मालिक! हमको, परिवार के लोगों और रिश्तेदारों को, हमारे दोस्तों को और इस धरती पर बसने वाली तमाम मानवता को ईमान के साथ ज़िन्दा रख और ईमान के साथ इन्हें मौत दे। इसलिए कि ईमान ही मानव समाज का पहला और आखि़री सहारा है, जिस तरह अल्लाह के एक पैग़म्बर इब्राहीम (अलैहि.) जलती हुई आग में अपने ईमान की वजह से कूद गए थे और उनका एक बाल तक न जल सका था, आज भी उस ईमान की ताक़त आग को गुल व गुलज़ार बना सकती है और सच्चे रास्ते की हर रुकावट को ख़त्म कर सकती है।